भारत में अरबों के आक्रमण का मूल उद्देश्य इस्लाम का प्रचार था
अरबों का ध्यान भारतीयों की समृद्धि पर था. वे अपनी आर्थिक
दशा को समुन्नत करना चाहते थे. अरबों के हृदय में राजनैतिक एवं क्षेत्रीय विस्तार
की महत्वकांक्षा भी आक्रमण का प्रेरक कारण बनी. इस्लाम के प्रचार की भावना ने उनके
जोश व् मनोबल को बनाये रखा. प्रोफेसर आर्शीवादी लाल श्रीवास्तव के अनुसार सिंध पर
अरबों के आक्रमण के अनेक उद्देश्य थे किन्तु धर्म का प्रचार उनका मूल उद्देश्य था.
इस्लामिक खलीफाओं ने सिंध फतह के लिए कई अभियान चलाये. १०
हजार सैनिकों का एक दल ऊँट-घोड़ों के साथ सिंध पर आक्रमण करने के लिए भेजा गया.
सिंध पर ईसवी सन ६३८ से ७११ ईसवी तक के ७४ वर्षों के काल में ९ खलीफाओं ने १५ बार
आक्रमण किया. १५ वें आक्रमण का नेतृत्व मुहम्मद बिन कासिम ने किया.
ईराक के गवर्नर अल-हज्जाज ने अपने चचरे भाई व् दामाद इलाउद्दीन
मुहम्मद बिन कासिम की एक विशाल एवं शक्तिशाली सेना के साथ, सिंध पर आक्रमण करने के
लिए भेजा. वह १७ वर्ष का साहसी व् महत्वाकांक्षी नवयुवक था. ईश्वरी प्रसाद के
अनुसार सिंध पर मुहम्मद-बिन-कासिम का आक्रमण इतिहास की बड़ी रोमांचकारी घटना है.
मुहम्मद बिन कासिम १५,००० वीरों और बहुत से अश्वों से युक्त ऊंटों को लेकर मकराना
होते हुए देवल पहुँचा था. ७१२-१३ ईसवी में उसे सिंध पर विजय प्राप्त हो गई.
सिंधियों ने बहुत वर्षों तक संघर्ष किया लेकिन अंततः उन्हें हार मिली. सिंध के
शासक दाहिर की पराजय के कई कारण थे. दाहिर की सेना कासिम की सेना को देखते हुए
बहुत कम थी. दाहिर ने शत्रु के समक्ष मोर्चे पर घबराहट का प्रदर्शन किया. उसने
सिंध नदी के पश्चिम का भाग खाली करके पूर्वी तट से घाटों को रोककर बचाव की लड़ाई का
प्रबंध किया. दाहिर को अपने राज्यों में बौद्धों, जाटों आदि के असंतोष का सामना
करना पड़ा.
मुहम्मद बिन कासिम ने बाद में सिन्धु पार करके राबर,
ब्राह्मणवाद, अलोरा, सिक्का, मुल्तान और देवल पर अधिकार कर लिया. जनता को आतंकित
करके उसने कत्लेआम किया. उसने १७ वर्ष से ऊपर के पुरुषों को मौत के घाट उतार दिया.
ईश्वरी प्रसाद के अनुसार ६,००० का उसने वध किया और दाहिर का समस्त कोष छीन लिया.
बहुत से लोगों को इस्लाम स्वीकार कराया गया तथा उनपर जजिया कर भी लगाया गया. मुहम्मद
ने देवल के लिए एक शासक नियुक्त किया और उसकी सहायता के लिए ४००० सैनिक नियुक्त
किए.
मुहम्मद बिन कासिम अत्यंत ही क्रूर था. सिंध के दीवान
गुन्द्मल की बेटी ने सर कटवाना स्वीकार किया, पर मीर कासिम की पत्नी बनना नहीं.
इसी तरह वहां के राजा दाहिर (६७९ ईसवीं में राजा बने) और उनकी पत्नियों और
पुत्रियों ने भी अपनी मातृभूमि और अस्मिता की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी. मुहम्मद
बिन कासिम ने अपने दो वर्षीय शासन काल में अरब शासन व्यवस्था स्थापित करने के
प्रयास किये. मुहम्मद बिन कासिम ने प्रजा को कुछ हद तक धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान
की. ब्राह्मणों को कुछ राजकीय पद प्रदान किये गए. उन्हें जजिया तथा अन्य करों से भी
मुक्त रखा गया. उसने भूमिकर एक-तिहाई से २/५ रखा. गैर मुस्लिम लोगों को ४८, २४ या
१२ दिरहय (आर्थिक स्थिति के अनुरूप) प्रति वर्ष, प्रति व्यक्ति जजिया कर के रूप
में देने पड़ते थे. बच्चों और स्त्रियों को इससे मुक्त रखा गया. भारतीयों से यह
अपेक्षा की जाती थी कि वे आगन्तुक मुसलमानों का अनिवार्य रूप से आतिथ्य करें. जनता
पर कई विशेष कर भी लगाये गए थे. लेकिन जन असंतोष विद्यमान था और हिदुओं की स्थिति
बहुत ख़राब थी. राजकीय न्यायाधिकरणों का काम हिन्दुओं से रुपया एंठना और उनका बलात
धर्मपरिवर्तन कराना था. दाहिर के पुत्र जयसिंह को भी अपने पूर्वजों का धर्म छोडकर
इस्लाम स्वीकार करना पड़ा. अरब विजय का राजनैतिक दृष्टि से अधिक महत्व नहीं है. यह
एक ज्वार के समान था जो इस्लाम की धारा में सिंध को डुबो गया. अरब सिंध से आगे विजय
प्राप्त नहीं कर सके. गुर्जर, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि राजवंशों के प्रतिरोधों के
कारण वे आगे न बढ़ सके.
अरब भारतीयों के निकट सम्पर्क में आये, उन्होंने भारतीयों
से ज्योतिष, कला, चिकित्सा के क्षेत्र में काफी कुछ सीखा. ज्योतिष, गणित, फलित,
रसायन आदि से सम्बन्धित संस्कृत ग्रन्थों का अरबी में अनुवाद किया गया. मसूर
हज्जाज की खिलाफत (७५३-७७४ ईसवी) के दरबार में भारतीय विद्वानों का आदर किया जाता
था. ब्रह्मगुप्त के ब्रह्म सिद्धांत व् खण्ड खाद्य अरबों में बहुत प्रसिद्द थे.
आयुर्वेद, दर्शन, ज्योतिष आदि का बहुत विकास हुआ. हिन्दुओं की संस्कृति व् विद्वता
का अरबों ने भरपूर फायदा उठाया. भारतीय शिल्पियों और चित्रकारों को मस्जिदें बनाने
व् उनकी सजावट करने के लिए रखा गया. अरबों ने अपनी सभ्यता का पूर्ण विकास किया.
भारतवर्ष में भी अरबों के आगमन से एक नये धर्म का प्रवेश हुआ. सिंध विजय के
राजनैतिक प्रभाव तो प्रभावहीन रहे लेकिन सांस्कृतिक प्रभावों को नाकारा नहीं जा
सकता.
भारत में इस्लामिक शासन का विस्तार सातवीं शताब्दी के अंत
में मुहम्मद बिन कासिम के सिंध पर आक्रमण और बाद के मुस्लिम शासकों द्वारा हुआ.
लगभग ७१२ में इराकी शासक अल हज्जाज के भतीजे एवं दामाद मुहम्मद बिन कासिम ने १७
वर्ष की अवस्था में सिंध और बूच पर के सफल अभियान का सफल नेतृत्व किया.
मुख्य स्रोत- www.vivacepanorama.com 





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