नरेंद्र मोदी हिंदू काल का औरंगजेब है

आज सबसे अधिक विरोध नरेंद्र मोदी का हो रहा है। जाहिर है कि उनके समर्थकों की संख्या भी ज़्यादा है।
मेरे दृष्टिकोण से नरेन्द्र मोदी हिंदुओं के औरंगजेब हैं। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि इतिहास के मुगल बादशाह औरंगजेब ने जिस प्रकार से सत्ता की ठीक उसी प्रकार से आज नरेंद्र मोदी कर रहे हैं।
पाकिस्तान औरंगजेब को अपना नायक मानता है जबकि हिंदुस्तान औरंगजेब को खलनायक। जबकि इसके ठीक विपरीत पाकिस्तान में अकबर को खलनायक माना जाता है जबकि हिंदुस्तान में अकबर को "महान" बताया जाता है।
ठीक उसी प्रकार आज एक कम्युनिटी के लोग मोदी को राष्ट्रीय नायक बनाने पर एकमत हैं तो दूसरी कम्युनिटी उसे राष्ट्रीय खलनायक बनाने पर आमादा है। मोदी को खलनायक मानने वाले वही लोग हैं जो औरंगजेब को अपना हीरो मानते हैं।
यहां गौरतलब बात ये है कि अकबर और औरंगजेब दोनों ही विदेशी थे और दोनों का ही ताल्लुक़ एक धर्म विशेष से था। दोनों ने ही इस देश पर शासन किया।
अंतर केवल इतना था कि औरंगजेब ने सत्ता पर काबिज़ रहने के लिए उस समय के *कम्युनल* लोगों का सहारा लिया और अकबर ने उस समय के *सेक्यूलर* नेताओं को अपने साथ जोड़ लिया। हालांकि मकसद दोनों का एक ही था, और वो मकसद था सत्ता में बने रहना।
एक और बात जो ग़ौर करने लायक है वह ये कि इतिहास में औरंगजेब को हिंदुओं का कट्टर विरोधी बताया जाता है। जबकि ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार औरंगजेब के शासनकाल में हिन्दू मनसबदारों की संख्या 31.6 % थी, वहीं अकबर के शासनकाल में हिन्दू मनसबदारों की संख्या 22.5% थी। और मजे की बात ये है कि ब्रिटिश शासन में 1869 ईसवी तक किसी भी भारतीय को आई.सी.एस में बैठने की अनुमति नहीं थी। 1947 में जब भारत आजाद हुआ, उसके पूर्व आई.सी.एस में मात्र 5% भारतीय थे जबकि 95% आईसीएस अंग्रेज थे।
एक और बात जिस जज़िया कर के लिए औरंगजेब को दोषी बताया जाता है। उस जज़िया कर को मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर विजय के दौरान इस्लामी कानून के अनुसार लगाया था। इस कानून के अनुसार इस कर में बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों, ब्राह्मणों एवं सरकारी या प्रशासनिक कर्मचारियों पर जज़िया कर नहीं लगाया गया था। सल्तनत काल में फिरोजशाह तुगलक ने अपने काल में जज़िया कर लगाया था। लेकिन साथ ही साथ उसने अपने समकालीन 24 कष्टदाई करों को समाप्त कर दिया था। अकबर ने इस जज़िया कर को 1564 ईसवी में ख़त्म किया था, हालांकि उस समय ये केवल कागजों पर ही चल रहा था। औरंगजेब ने पुनः 1679 ईसवी में जज़िया कर लगाया था और तमाम मुस्लिम रियाया पर ज़कात को कड़ाई से लागू कर दिया था।
जहां तक मुगलकाल में औरंगजेब द्वारा मंदिर तोड़ने की बात आती है तो अमेरिका के एक इतिहासकार प्रो. रिचर्ड ईटन ने, जो कि भारतीय इतिहास के विशेषज्ञ माने जाते हैं अपनी किताब "मंदिरों पर आक्रमण और मध्यकालीन भारत राज्य" नामक पुस्तक में लिखा है कि 1193 ईसवी से लेकर 1750 ईसवी के बीच में कुल 80 मंदिरों को नष्ट किया गया।
एक और गौरतलब बात ये है कि 600 वर्षों के मध्यकालीन इतिहास में केवल एक साम्प्रदायिक दंगा हुआ था, जो अहमदाबाद में हुआ।
औरंगजेब एक धार्मिक व्यक्ति था और इस्लामिक क़ायदे-कानूनों को मानने वाला था जबकि इसके ठीक विपरीत अकबर एक शराबी और अय्याश किस्म का व्यक्ति था।
इस सबके बावजूद भी औरंगजेब को एक धर्म विशेष का नायक और दूसरे धर्मों का खलनायक बताया गया जबकि एक शराबी और अय्याश किस्म के अकबर को महान नायक के रूप में पेश किया गया।
आज ठीक वैसा ही नरेंद्र मोदी के सन्दर्भ में किया जा रहा है, जबकि दूसरी ओर एक *परिवार विशेष* के लोगों को महान बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
नरेंद्र मोदी अपने धर्म, अपनी संस्कृति और अपनी सभ्यता को साथ लेकर इस देश को विकास के पथ पर ले जा रहे हैं, लेकिन ये बात उन ही लोगों को रास नहीं आ रही जो औरंगजेब को अपना हीरो मानते हैं।
इस देश की 80% आबादी वैदिक संस्कृति और सभ्यता को मानती है, क्या उसकी बात करना साम्प्रदायिकता है? इस देश की सभ्यता और संस्कृति को अपनाना और उस पर अमल करना किसी भी दृष्टिकोण से गलत कैसे हो सकता है।
नरेन्द्र मोदी की सरकार को लगभग साढ़े चार साल हो गए जिसमें अभी तक भी कोई ऐसा उदाहरण नहीं देखने को मिला जिसे पूरी तरह से इस्लाम विरोधी करार दिया जा सके।
क्या इस तथ्य को नकारा जा सकता है कि मोदी शासनकाल में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के सिविल सेवा परीक्षा 2017 के फाइनल रिजल्ट आ गये हैं. इस परीक्षा में कुल 990 लोगों को सफलता मिली है, जिसमें 51 (5.15 फीसदी) मुस्लिम हैं. आजाद भारत के इतिहास में यह पहला मौका है, जब इतनी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग आइएएस की परीक्षा में पास हुए हैं. टॉप 100 में 6 मुस्लिम हैं, जिसमें तीन महिलाएं हैं. इनके नाम समीरा एस (28वीं रैंक) जमील फातिमा जेबा (62वीं रैंक) और हसीन जेहरा रिजवी (87वी रैंक) हैं. वर्ष 2016 में शीर्ष 100 उम्मीदवारों में 10 और 2015 में मात्र एक मुस्लिम उम्मीदवार जगह बना पाया था।मुस्लिम समाज के लिये तमाम विकास कार्य किये जा रहे हैं।
मुस्लिम समाज को अपने तीज-त्योहारों को मनाने की पूरी स्वतंत्रता है।
*लेकिन दिक़्क़त ये है कि मोदी टोपी नहीं पहनता, मोदी ईमाम साहब की चापलूसी नहीं करता, मोदी मजारों पर जाकर चादर नहीं चढ़ाता, मोदी ये नहीं कहता कि सिर्फ मुस्लिम लड़कियां ही हमारी बेटियां हैं, मोदी ने किसी आजम खान या गुलाम नबी आज़ाद जैसे फिरकापरस्त को नहीं पाल रखा, दिक़्क़त ये है कि मोदी रोज़ा अफ्तारी में नहीं जाता, दिक़्क़त ये है कि मोदी *राजपरिवार* को सूट नहीं करता, दिक़्क़त ये है कि मोदी कश्मीर के आतंकियों को भटके हुए नौजवान कहकर माफ नहीं करता, दिक़्क़त ये है कि *मोदी गाय को खुलेआम सड़कों पर काटने की छूट नहीं देता, *दिक़्क़त ये है कि मोदी ने जाकिर नायक जैसों को "शांतिदूत" नहीं बनाया,* दिक़्क़त ये है कि मोदी जिन्ना को पसन्द नहीं करता वो वीर सावरकर को सही समझता है।
*दिक़्क़त ये है कि वो अपने धर्म, अपनी संस्कृति और अपनी सभ्यता को प्राथमिकता देता है।*
*सबसे बड़ी दिक्कत तो ये है कि मोदी दलित को दलित नहीं बल्कि हिन्दू कहता है। और यही सबसे बड़ी दिक़्क़त है क्योंकि जो लोग हिन्दू धर्म को बांटने में लगे हैं, जो लोग हिन्दू समाज को अगड़े-पिछड़े और दलित में बांटने में लगे हैं,उनके तनबदन में आग लग जाती है जब मोदी कहता है कि हम सिर्फ हिन्दू हैं, सिर्फ हिन्दू।।*
मोदी से दिक़्क़त उन्हीं लोगों को है जिन्हें खाड़ी देशों से खैरात मिलनी बन्द हो गई।
*ये सच है कि मोदी हिंदुओं का औरंगजेब है, और ये भी कड़वा सत्य है कि अब हिंदुओं को किसी दोगले अकबर की जरूरत भी नहीं है।*

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