कांग्रेस की विनाशकाले विपरीत बुद्धि
एक ज़माने में कांग्रेस ब्राह्मणों की पार्टी कहलाती थी। जवाहर लाल नेहरू अपने नाम के पहले "पण्डित" शब्द लगाते थे। इंदिरा गांधी के समय तक कांग्रेस में ब्राह्मणों का काफी मान-सम्मान होता रहा। किन्तु राजीव गांधी के समय में ही कांग्रेस ने ब्राह्मणों से खासा फासला बना लिया था और कांग्रेस दलित-मुस्लिम के समीकरण पर सिमटने लगी थी। राजीव गांधी के बाद से गांधी परिवार ने अल्पसंख्यक और दलित समाज पर विशेष ध्यान देना प्रारम्भ कर दिया। जो ब्राह्मण नेता कांग्रेस में थे भी, वह गांधी परिवार की बहू की वफ़ादारी में ज्यादा लग गए और अपने ही समाज से किनारा करने लगे। पण्डित नारायण दत्त तिवारी अब एक गुजरे जमाने की बात हो चुके थे। सोनिया गांधी के हाथों की कठपुतली बने एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने तो देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यक समाज का ही पहला हक बता दिया था, इसमें उनकी कोई गलती भी नहीं थी, क्योंकि स्वयं ये नेता अल्पसंख्यक थे, सोनिया गांधी ईसाई समुदाय से हैं और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस मुस्लिम समाज को साधने में एक लंबे समय से लगी है। ऐसे में देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यक समुदाय का ही बनता है। बात यहीं तक होती तब भी ठीक था. लेकिन सोनिया गांधी ने राहुल गांधी को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त कर दिया, जो समझ से ही परे था। जिसे कांग्रेसी मानसिकता के गुलामों ने सर झुकाकर स्वीकार कर लिया। उत्तर प्रदेश की कमान राजब्बर जैसे लोगों को सौंप दी गई जो उत्तर प्रदेश की राजनीति की एबीसीडी को भी नहीं जानते।किसी समझदार मुस्लिम नेता या दलित नेता को बनाया होता तब भी ठीक था, लेकिन राजब्बर जैसे इंसान को जो उत्तर प्रदेश की राजनीति का कखग भी सही से नहीं जानते उन्हें प्रदेश का अध्यक्ष बना दिया गया।
राहुल गांधी में राजनीतिक गुण नहीं हैं, ऐसा भी नहीं है लेकिन राहुल गांधी की सबसे बड़ी दिक़्क़त उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता और सही समय पर निर्णय न लेना है।
यदि सन 2009 में राहुल गांधी ने इस देश का प्रधानमंत्री बनने का आग्रह स्वीकार कर लिया होता तब शायद उन्हें आज ऐसी परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता और "पप्पू" जैसा खिताब भी उन्हें न मिला होता।
बहरहाल कांग्रेस का ब्राह्मणों से दूर होते जाना, सोनिया गांधी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना, राहुल गांधी का 2009 में प्रधानमंत्री बनने का आग्रह ठुकराना और उसके बाद मोदी जैसे परिपक्व और दूरदर्शी नेता के समक्ष राहुल गांधी जैसे अधकचरा राजनीतिक ज्ञान रखने वाले और हमेशा चाटुकारों से घिरे रहने वाले नेता को खड़ा करना, पूर्ण रूप से कांग्रेस के विनाश का कारण है।
विनाश का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा कि एक क्षेत्रीय पार्टी का नेता कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी की हैसियत गिनाने लगे जिसने इस देश पर 70 साल एकछत्र राज किया हो।
यदि सन 2009 में राहुल गांधी ने इस देश का प्रधानमंत्री बनने का आग्रह स्वीकार कर लिया होता तब शायद उन्हें आज ऐसी परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता और "पप्पू" जैसा खिताब भी उन्हें न मिला होता।
बहरहाल कांग्रेस का ब्राह्मणों से दूर होते जाना, सोनिया गांधी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना, राहुल गांधी का 2009 में प्रधानमंत्री बनने का आग्रह ठुकराना और उसके बाद मोदी जैसे परिपक्व और दूरदर्शी नेता के समक्ष राहुल गांधी जैसे अधकचरा राजनीतिक ज्ञान रखने वाले और हमेशा चाटुकारों से घिरे रहने वाले नेता को खड़ा करना, पूर्ण रूप से कांग्रेस के विनाश का कारण है।
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*Manoj Chaturvedi "Shastri"*
(Journalist, Political Analyst & Social Worker)
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