जरा सोचिए
15 अगस्त 1946 को जिन्ना (मुस्लिम लीग) के हिंदुओं पर डायरेक्ट एक्शन (सीधी कार्यवाही) के तुगलकी फरमान के पश्चात पूर्वी बंगाल के मुस्लिम बहुल जिले नोआखाली में हुई हिंसा के दौरान मात्र 72 घण्टे में 6 हज़ार लोग मारे गए, 20 हज़ार लोग घायल हुए औऱ 1 लाख लोग बेघर हो गए थे। इसे "ग्रेट कलकत्ता किलिंग" के नाम से भी जाना जाता है।
विडम्बना देखिये कि जिन गरीब, अशिक्षित औऱ उन्मादी मुसलमानों ने धार्मिक उन्माद में बहकर इस कत्लेआम को अंजाम दिया उन लगभग सभी लोगों ने मात्र 50 वर्ष पूर्व ही अपना धर्म परिवर्तन किया था।
27 फरवरी 2002 की सुबह अयोध्या से आ रहे 59 कार सेवकों को गोधरा रेलवे स्टेशन पपर साबरमती एक्सप्रेस में जिंदा जला कर मार डाला गया था। इस घटना के बाद 28 फरवरी को गुजरात के विभिन्न शहर में दंगे भड़कने शुरू हो गए। पहली और दूसरी मार्च को दंगा अपने उग्र रूप में था, लेकिन तीन मार्च को सरकार ने दंगे पर पूरी तरह से नियंत्रण पा लिया था। इस दंगे में कुल 1044 लोगों की मौत हुई, जिसमें 790 मुसलमान और 254 हिंदू शामिल थे।
अब विडंबना देखिये कि, बंगाल में हुए इतने बड़े नरसंहार के मात्र 72 साल बाद छद्मधर्मनिर्पेक्षता की खाल ओढ़े कुछ भेड़िए उसी जिन्ना को महापुरुष सिद्ध करने में लगे हैं।
जबकि यही छद्मधर्मनिर्पेक्ष लॉबी गुजरात कांड के 16 बाद आज भी गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस सदी का सबसे बड़ा हत्यारा घोषित करने में जी जान से जुटी है। क्यों?जरा सोचिए।





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