आधुनिक भारत में साम्प्रदायिकता का जन्म (भाग-1)

आधुनिक भारत में साम्प्रदायिकता के जन्मदाता अंग्रेज ही थे    आधुनिक भारत में साम्प्रदायिकता के विकास का श्रेय भले ही ब्रिटिश शासन को दिया जाता रहा हो लेकिन इसके लिए केवल और केवल अंग्रेजों को ही इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराना शायद सच्चाई के साथ विश्वासघात करना होगा हालाँकि ये बात काफी हद तक सही है कि आधुनिक भारत में साम्प्रदायिकता के जन्मदाता ब्रिटिश शासक ही थे.

सन १८१७ ईसवी में अंग्रेज इतिहासकार जेम्स मिल ने अपनी पुस्तक “ब्रिटिश कालीन भारत का इतिहास” में भारतीय इतिहास को तीन कालखंडों में बांटा- हिंदुकाल, मुस्लिमकाल और ब्रिटिशकाल. यहाँ गौरतलब बात ये है कि मिल ने पहले दो कालों का विभाजन धर्म-सम्प्रदाय के आधार पर किया जबकि तीसरे काल को उसने “ईसाईकाल” न कहकर ब्रिटिश काल की संज्ञा दी. १८४३ ईसवी में ही भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड एलनबरो ने लिखा था कि “मैं इस विश्वास पर आँखें मूँद कर नहीं रख सकता कि यह जाति (मुसलमान) हमारे प्रति मूल रूप से विरोधी हैं और इसलिए हमारी सच्ची नीति हिन्दुओं को सांत्वना देने की है”. एक प्रपत्र में १४ मई १८५८ ईसवी को बम्बई के गवर्नर लार्ड एल्फिन्सटन ने लिखा- “बांटो और राज करो एक पुरानी रोमन कहावत थी और यह हमारी नीति होनी चाहिए. मैं इतने निश्चयपूर्वक यह बात करने में शायद हिचकिचाता अगर मैं यह बताने में सक्षम नहीं होता कि इस विषय पर मेरे विचार ड्यूक ऑफ़ वेलिंग्सटन के पूरी तरह समान हैं”. लार्ड कर्जन ने १९०३ ईसवी में चटगाँव और ढाका डिविजनों को बंगाल से अलग कर आसाम में मिला देने एक योजना बना डाली. लार्ड कर्जन ने इस योजना के पक्ष में माहौल बनाने के लिए ढाका में दिए अपने भाषण में कहा था “मुसलमानों को विभाजन से वह लाभ मिलने वाला है, जो उसे तुर्कों और मुगलों के जमाने में भी नहीं मिला”. इसके बाद १६ अक्टूबर १९०५ के दिन हिन्दुओं और श्री ऐ रसूल तथा ख्वाजा अत्तिकुल्ला के नेत्रत्व में बहुत से मुसलमानों के विरोध करने पर भी कर्जन ने मुस्लिमों का सहयोग प्राप्त करने और उसके आधार पर राष्ट्रवादी ताकतों को कमजोर करने के लिए बंगाल का विभाजन कर दिया. सर हेनरी कॉटन के शब्दों में, “इस योजना का उद्देश्य एकता को छिन्न-भिन्न कर दृढ़ता की उस भावना को भंग करना था, जो प्रान्त में दृढ हो गई थी. इसके मूल में कोई शासन सम्बन्धी कारण नहीं था. लार्ड कर्जन की नीति का मुख्य उद्देश्य बढती हुई शक्तियों को क्षीण कर देशभक्ति के भाव से अनुप्राणित राजनीतिक प्रवत्तियों को नष्ट करना था”. पूर्वी बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर ब्लूमफील्ड फूलर ने कहा था कि “अंग्रेजों की दो प्रिय पत्नियाँ हैं- हिन्दू और मुसलमान. इसमें भी मुसलमान विशेष रूप से प्रिय हैं”. (क्रमशः)
  
विशेष – यह लेख “भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन” (ज्ञान सदन प्रकाशन) जिसके (लेखक मुकेश बरनवाल) की पुस्तक में से सम्पादित किये गए कुछ अंश पर आधारित है

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