*हम किरण यादव जैसे लोगों के आभारी हैं जो श्रीराम भक्तों को गालियां और स्वयं श्रीराम का अपमान करते हैं*

आज एक वायरल वीडियो देखा जो किसी किरण यादव के नाम से है। ये नाम वास्तविक है अथवा काल्पनिक ये कहना मुश्किल है। लेकिन उस महिला पर जो अभद्र टिप्पणियां की गईं मैं उसका विरोध करता हूँ।
महिला पर टिप्पणियां इसलिए की गई क्योंकि उसने भगवान श्रीराम और माता सीता को लेकर काफी अप्पतिजनक बातें कहीं और उसने स्पष्ट तौर से ब्राह्मण, बनिया और क्षत्रिय को भी अपना फॉलोवर न बनने के लिए कहा। कुछ अतिउत्साही लोगों ने उस समाज विशेष को भी जमकर कोसा जिससे वह महिला कथिततौर पर जुड़ी हुई बताई जाती है।
कुछ लोगों ने मुझसे कहा कि शास्त्री जी आप कोई कमेंट क्यों नहीं दे रहे।
मेरे दृष्टिकोण से वह महिला जो कुछ भी कह रही है या उससे कहलवाया जा रहा है वह निश्चित रूप से आज की बंटवारे की गंदी राजनीति का एक जीता जागता उदाहरण है।
मेरा बचपन का एक मित्र है जो स्वयं यादव समाज से है और आजकल चमोली जिले में पुलिस अधिकारी है। मेरा यह मित्र न केवल संस्कृत भाषा का अच्छा जानकार है बल्कि हिन्दू सनातन धर्म का कट्टर समर्थक भी है। उसके मुखारविंद से जब संस्कृत के श्लोक निकलते हैं तब ऐसा प्रतीत होता है कि मानो स्वयं सरस्वती देवी उसकी जिह्वा पर विराजमान हैं। एक दूसरे सज्जन जो जाति से हरिजन हैं और एक लखनऊ में उच्चाधिकारि हैं, वह जब रामायण सुनाते हैं तब बड़े से बड़ा पण्डित भी दांतों तले उंगलियां चबा जाए। मजे की बात यह है कि पूरी रामायण उन्हें कंठस्थ है।
एक और मित्र जो जाति से वाल्मीकि हैं और बड़े अधिकारी हैं, जब श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक बोलते हैं तब ऐसा प्रतीत होता है कि साक्षात श्रीकृष्ण उनकी जिह्वा पर विराजमान हों।
ये सब उदाहरण मैंने इसलिए दिए हैं ताकि आमजन यह जान लें कि एक व्यक्ति विशेष की विचारधारा उसकी जाति या सम्प्रदाय की विचारधारा का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती।

श्री कृष्ण यदुवंशी थे, और श्रीराम सूर्यवंशी क्षत्रिय थे। जो महिला श्रीराम का अपमान कर रही थीं वह श्रीकृष्ण का अपमान करने का ख्याल भी दिमाग में नहीं ला सकतीं।
श्रीराम को लेकर हमेशा से ही विवाद रहा है।
1989 में जेएनयू के इतिहास विभाग द्वारा "पॉलिटिकल एब्यूज़ ऑफ हिस्ट्री" नामक एक किताब प्रकाशित की गई थी। रोमिला थापर सहित करीब दो दर्जन वामपंथी विचारधारा के लोगों ने उसे लिखा था।इसमें श्रीराम को एक कोरी कल्पना बताया गया था।
एक अंग्रेजी लेखिका ने एक किताब लिखी "द हिन्दुज एन अल्टरनेरिव हिस्ट्री" जिसमें श्रीराम का तरह-तरह से मज़ाक बनाया गया। 2007 में यूपीए सरकार ने कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि "राम एक मिथकीय चरित्र है।"
एक चुनावी सभा में श्रीराम का चित्र लगाए जाने पर कथित रूप से चुनाव आयोग ने आपत्ति की थी।

जिन भीमराव आंबेडकर का हवाला देकर हिन्दू धर्म, सभ्यता और संस्कृति को अपमानित करने का कुत्सित प्रयास किया जाता है, उन्होंने कहा था कि "हिंदुओं में सामाजिक बुराइयां हैं, किन्तु एक अच्छी बात है कि उनमें उसे समझने वाले और उसे दूर करने वाले सक्रिय लोग भी हैं, जबकि अन्य धर्म ये मानते ही नहीं कि उनमें बुराइयां हैं।"

हिन्दू संस्कृति की महानता का वर्णन करते हुए बीआर अम्बेडकर ने कहा था कि " बौद्ध धर्म भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है और इसलिए मेरा धर्मान्तरण भारतीय संस्कृति और इतिहास को क्षति न पहुंचाए इसकी मैंने सावधानी रखी है।"

भारतीय संस्कृति के दर्शन और चिंतन पर बीआर अम्बेडकर ने कहा था कि " भारत को धर्म, दर्शन, चिंतन में विदेशों से कुछ लेने की ज़रूरत नहीं है".

वास्तव में श्रीराम आधुनिक भारतीय  संस्कृति, सभ्यता और दर्शन के प्रतिबिम्ब हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और माता सीता सच्ची भारतीय स्त्री के चरित्र का जीता-जागता उदाहरण हैं। इसलिए जो लोग भारतीय संस्कृति, सभ्यता और चिंतन को नष्ट-भ्रष्ट करना चाहते हैं, वही लोग हिन्दू समाज के कुछ युवाओं को बहला-फुसलाकर इस तरह की अनर्गल बातें करते हैं।
हमारी संस्कृति सनातन है, और सनातन का अर्थ है "शाश्वत सत्य". और सत्य को कितना भी तोड़ा-मरोड़ा जाए फिर भी वह सत्य ही रहता है।

अंत में केवल इतना अवश्य कहना चाहूंगा कि हम आभारी हैं किरण यादव जैसे महानुभावों के जो किसी न किसी रूप में स्वयं तो श्रीराम का नाम लेते ही हैं, साथ ही साथ दूसरों को भी श्रीराम का के विषय में जान लेने की प्रेरणा देते हैं (आलोचना  प्रेरणा ही देती है).

*-मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*

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