क्या एससी/एसटी क़ानून के दुरूपयोग के शिकार केवल एक समाज या वर्ग विशेष के लोग ही बनते हैं
-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने एससी/एसटी पर एक निर्णय दिया था जिसको
लेकर बीती २ अप्रैल को पुरे देश में भारत बंद का आह्वान किया गया था. जिसके चलते
देश में कई स्थानों पर उपद्रव हुए और हिंसात्मक घटनाएँ हुईं. देश की सम्पत्ति को
नुकसान पहुँचाया गया, और काफी जान-माल की क्षति भी हुई. उसी दौरान हमारे एक मित्र
जो कि अल्पसंख्यक समुदाय से हैं और सवर्ण जाति के हैं, हमें मिले और उन्होंने माननीय
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर अपनी असहमति व्यक्त करते हुए, आन्दोलन का समर्थन किया.
उनका मानना था कि यह संघ और भाजपा की एक चाल है जिसके चलते एससी/एसटी एक्ट को
कमजोर किया जा रहा है. लेकिन जब हमने उनसे पूछा कि इससे आपको क्या फर्क पड़ता है,
आपको तो कोर्ट के निर्णय का समर्थन करना चाहिए क्योंकि इससे किसी धर्म या
सम्प्रदाय विशेष का कोई मतलब नहीं है वरन ये तो सभी के लिए हितकारी है. एससी/एससी
एक्ट का दुरुपयोग तो आपके समाज के लिए भी किया जा सकता है. इस बात को सुनकर वो
हँसे और बोले कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत केवल आपके समाज के लिए ही लोग
कर सकते हैं. मुस्लिम-दलित तो भाई-भाई हैं, हमारे और उनके�(दलित) के बीच तो भाईचारे की भावना है, क्योंकि इस्लाम तो
सभी को बराबरी का हक देता है. हमें एससी/एसटी एक्ट के मजबूत होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. हम तो चाहते हैं
कि एससी/एससी एक्ट और मजबूत हो.
इस बातचीत को अभी कुछ ही दिन बीते होंगे कि कल ही एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक के
प्रथम पेज पर छपी एक खबर पर हमारी नजर पड़ी जिसमें लिखा था कि ग्वालियर के मोहना
थाने में किसी जगदीश नामक दलित ने एक सोनू खान नामक अल्पसंख्यक के खिलाफ एक रिपोर्ट
लिखवाई जिसके अनुसार सोनू खान ने जगदीश को लात-घूंसों से मारा-पीटा और जातिसूचक गालियां
दीं. पुलिस ने सोनू खान को २३ अप्रैल २०१८ को एससी/एसटी एक्ट के तहत एसएसपी से
अनुमति लेने का हवाला देते हुए उसी दिन गिरफ्तार कर लिया जो कि सीधे-सीधे माननीय सुप्रीम
कोर्ट द्वारा एससी/एसटी एक्ट को लेकर बनाई गई गाइड लाइन के उलंघन का मामला बनता है.
पुलिस ने सोनू को ५ मई २०१८ तक न्यायायिक हिरासत में भेजने के लिए भी आवेदन किया.
लेकिन माननीय न्यायालय ने गिरफ्तारी के कारणों को आधारहीन मानते हुए इस गिरफ्तारी
को अमान्य कर दिया. कोर्ट ने उन सभी कारणों को सिरे से ख़ारिज कर दिया जो पोलिस ने
गिरफ्तारी के लिए बताये थे. साथ ही एसएसपी को मोहना थाना इंचार्ज के खिलाफ अनुशासनात्मक
कार्रवाई के आदेश दिए. यहाँ यह भी गौरतलब है कि आरोपी सोनू खान का कोई भी आपराधिक
रिकार्ड नहीं है.
अब सवाल ये है कि क्या अब भी यही माना जाये कि एससी/एससी एक्ट पर माननीय
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय उचित नहीं था? क्या एससी/एसटी एक्ट का दुरूपयोग नहीं
होता? क्या केवल एक समाज विशेष के लोग ही इस एक्ट के दुरूपयोग से प्रभावित होते
हैं या फिर समाज का एक बड़ा हिस्सा इस प्रकार के कानूनों के दुरूपयोग के लपेटे में
आ जाता है? 





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