अगर समाजवादी का टिकट किसी अल्पसंख्यक को गया तो भाजपा की राह हो सकती है आसान- नूरपुर विधानसभा उपचुनाव
-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
भाजपा के दिग्गज नेता और नूरपुर के दिवंगत विधायक स्व. लोकेन्द्र चौहान की
अकाल मृत्यु के पश्चात खाली हुई नूरपुर विधानसभा सीट के लिए उप-चुनाव की आहट सुनाई
देने लगी है, और इसी के साथ सम्भावित दावेदारों ने सम्बन्धित पार्टियों में टिकट
के लिए भागदौड़ शुरू कर दी है. भाजपा के टिकट के लिए स्व. लोकेन्द्र चौहान की पत्नी
को सबसे सशक्त दावेदार माना जा रहा है. कांग्रेस के टिकट पर अभी तक किसी की
दावेदारी सामने नहीं आई है. अभी ये भी कहना मुश्किल है कि नूरपुर चुनाव में
कांग्रेस अपना प्रत्याशी उतारेगी भी या नहीं. उधर बसपा से भी कोई स्पष्ट संकेत नहीं
मिल रहे हैं. लेकिन समाजवादी पार्टी के टिकट को लेकर घमासान मचता हुआ दिखाई दे रहा
है. माना जा रहा है कि समाजवादी के टिकट पर सबसे ज्यादा निगाह इसलिए लगी हुई है
क्योंकि अन्य पार्टियों की निष्क्रियता को
देखते हुए ये कयास लगाये जा रहे हैं कि इस टिकट को पाने वाले की जीत लगभग पक्की
है. और काफी हद तक ये बात सही भी है क्योंकि यदि चुनाव केवल भाजपा और सपा में होता
है तब ऐसी स्थिति में सपा का पलड़ा भारी हो सकता है. हालाँकि राजनीतिक जानकारों का
मानना है कि यदि समाजवादी पार्टी किसी मुस्लिम समुदाय को टिकट देती है तो वोटों का
ध्रुवीकरण होना लगभग तय है और इसका सीधा फायदा भाजपा को मिल सकता है. उधर कुछ
ज्ञानी लोगों का ये भी कहना है कि भाजपा मौका और हालात देखकर ही अपनी चाल चलेगी और
सम्भव है कि विपरीत परिस्थितियों को देखकर चुनावों को कुछ समय के लिए टाला जा सकता
है. बहरहाल सच्चाई कुछ भी हो परन्तु ये तय है कि यदि चुनाव हाल-फिलहाल में होते
हैं तो भाजपा और सपा की सीधी लड़ाई होना लगभग तय है. फिलहाल सपा के सामने धर्मसंकट
ये है कि वह किसको टिकट दे? असल में समाजवादी की समस्या है पिछड़ा और अति पिछड़ा
वर्ग खासतौर से हिन्दू समाज, जिसमें सैनी बिरादरी सबसे अहम् है. समाजवादी पार्टी
पिछड़ा वर्ग को नाराज नहीं करना चाहती है. उधर धार्मिक आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण
की भी चिंता उसे खाए जा रही है. यदि किसी मुस्लिम को टिकट दिया जाता है तब न केवल
पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा हिन्दू समाज उससे दूर हो सकता है बल्कि हो सकता है कि
इससे भाजपा को उसका सीधा लाभ मिल जाए. मुस्लिम समाज की मजबूरी है कि वह समाजवादी
पार्टी के ही उम्मीदवार को वोट करे बशर्ते कि बसपा अपना उम्मीदवार नहीं उतारती है.
लेकिन यदि सारी संभावनाओं को दरकिनार करते हुए बसपा ने अपना उम्मीदवार उतार दिया
तब बसपा उम्मीदवार की जीत को कोई नहीं रोक पायेगा क्योंकि दलित, मुस्लिम और अति
पिछड़ा वर्ग भाजपा को आसानी से हरा देंगे. बसपा की सबसे बड़ी परेशानी ये है कि यदि
वह नूरपुर विधानसभा उपचुनाव से अपने को दूर रखती है तब न केवल उसके परम्परागत
वोटर्स बल्कि उसके कार्यकर्ताओं का भी जोश ठंडा पड़ सकता है. दुसरे मुस्लिम समाज का
झुकाव भी समाजवादी की ओर बढ़ने लगेगा जिसका सीधा नुकसान बसपा को ही होगा. बसपा
सुप्रीमो को लोकसभा चुनावों में गठ्बन्धन की ये कीमत भारी पड़ेगी. समाजवादी पार्टी
के पास अपना कोई ख़ास वोटबैंक नहीं है, इसलिए उसका सारा दारमोदार मुस्लिम वोटों और
अति पिछड़े समाज पर टिका हुआ है.
बहरहाल जितने मुहं उतनी ही बातें हो रहीं हैं. किन्तु इतना तय है कि यदि भाजपा और समाजवादी के बहुसंख्यक समुदाय के उम्मीदवार मैदान में उतरते हैं तब ऐसे में टक्कर बहुत कड़ी होगी, किन्तु यदि समाजवादी पार्टी ने अपने अल्पसंख्यक प्रेम को यथावत रखा तब भाजपा के लिए काफी कुछ आसानी हो सकती है.
बहरहाल जितने मुहं उतनी ही बातें हो रहीं हैं. किन्तु इतना तय है कि यदि भाजपा और समाजवादी के बहुसंख्यक समुदाय के उम्मीदवार मैदान में उतरते हैं तब ऐसे में टक्कर बहुत कड़ी होगी, किन्तु यदि समाजवादी पार्टी ने अपने अल्पसंख्यक प्रेम को यथावत रखा तब भाजपा के लिए काफी कुछ आसानी हो सकती है.
-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”






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