सिर्फ मुसलमानों के ही क्यों बल्कि हजारों-लाखों निर्दोष और मासूम लोगों के खून से रंगा है कांग्रेस का दामन

-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
अभी हाल ही में अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के एक छात्र आमिर मिन्तोई ने कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद से सवाल किया था कि १९४८ में एएमयू एक्ट में पहला संशोधन हुआ. उसके बाद १९५० में प्रेसिडेनश्ल आर्डर जिसमें मुस्लिम दलितों से एससी/एसटी आरक्षण का हक छीना गया. इसके बाद हाशिमपुरा, मलियाना, मुजफ्फरनगर आदि में मुसलमानों का नरसंहार हुआ. इसके अलावा बाबरी मस्जिद में मूर्तियों का रखना और बाबरी मस्जिद की शहादत हुई. ये सब कांग्रेस की सरकार में हुआ. इन सारी घटनाओं का हवाला देते हुए आमिर ने सलमान खुर्शीद ने पूछा कि कांग्रेस के दामन पर मुसलमानों के खून के जो धब्बे हैं, इन धब्बों को आप किन अल्फाजों से धोयेंगे? सलमान खुर्शीद ने इस सवाल का जो भी जवाब दिया वह हमारी चर्चा का विषय नहीं है. बल्कि चर्चा का विषय ये है कि क्या कांग्रेस पर कथित रूप से सिर्फ मुसलमानों के ही खून के धब्बे हैं? क्या कांग्रेस सरकार १९६६ में हुए गोलीकांड में निर्दोष संतों और गो-रक्षकों तथा १९८४ में हुए सिख दंगों में मारे गए हजारों निर्दोष और मासूम लोगों के खून से सने अपने हाथों को धो पायेगी.
०७ नवम्बर १९६६ को दिल्ली में गौवध बंदी की मांग करते हुए शांतिपूर्ण आन्दोलन करने वाले निहत्थे और निर्दोष साधू-संतों और गौ-भक्तों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने गोलियां चलवा दीं थीं. इस घटना के गवाह, प्रसिद्ध इतिहासकार एवं लेखक आचार्य सोहनलाल रामरंग के शब्दों में “कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि ७ नवम्बर की सुबह ८ बजे गोरक्षा महाभियान समिति के संचालक व् सनातनी करपात्री जी महाराज ने चांदनी चौक स्थित आर्य समाज मंदिर से अपना सत्याग्रह प्रारम्भ किया. जिसमें महाराज के नेतृत्व में जगन्नाथपुरी, ज्योतिष्पीठ व् द्वारका पीठ के शंकराचार्य, वल्लभ सम्प्रदाय के सातों पीठ के पीथाधिपति, रामानुज सम्प्रदाय, मध्व सम्प्रदाय, रामानान्द्चार्य, आर्य समाज, नाथ सम्प्रदाय, जैन, बौद्ध व् सिक्ख समाज के प्रतिनिधियों, निहंग व् हजारों की संख्या में मौजूद नागा साधुओं ने भाग लिया था. यह हिन्दू समाज के लिए सबसे बड़ा एतिहासिक दिन था. कम से कम १० लाख लोगों की भीड़ जुटी थी, जिसमें १० से २० हजार तो केवल महिलाएं ही थीं. उस समय इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री थीं और गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री थे. इंदिरा सरकार केवल आश्वासन ही दे रही थी, कोई ठोस कदम नहीं उठा रही थीं. सरकार के झूठे वादे से उकताकर संत समाज ने संसद के बाहर प्रदर्शन करने का निर्णय लिया था.
ये लोग संसद भवन के समक्ष प्रदर्शन कर ही रहे थे कि अंदर से गोली चलाने का आदेश हुआ और पुलिस ने भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. संसद के सामने की पूरी सड़क खून से लाल हो गई. लोग मर रहे थे, एक-दुसरे के शरीर पर गिर रहे थे और पुलिस की गोलीबारी जारी थी. कम से कम ५ हजार निहत्थे और निर्दोष लोगों की जान उस गोलीबारी में गई थी. बड़ी त्रासदी हो गई थी और सरकार के लिए इसे दबाना जरुरी था. ट्रक बुलाकर मृत, घायल, जिन्दा सभी को उसमें ठूंसा जाने लगा. जिन घायलों के बचने की सम्भावना थी, उनकी भी ट्रक में लाशों के नीचे दबकर मौत हो गई. आखिरी समय तक ये नहीं पता चल पाया कि सरकार ने उन लाशों को कहाँ ले जाकर फूंक डाला या जमीन में दबा दिया. केवल शंकराचार्य को छोड़कर अन्य सभी संतों को तिहाड़ जेल में डाल दिया गया. उस समय जेल में करीब ५० हजार लोगों को जेल में भेड़-बकरी की तरह ठूँस दिया गया था. इंदिरा गाँधी ने तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारीलाल नंदा पर इस पूरे गोलीकांड की जिम्मेदारी डालते हुए उनका इस्तीफा ले लिया था. जबकि सच ये था कि गुलजारी लाल नंदा गोहत्या कानून के पक्षधर थे और वह किसी भी सूरत में संतों पर गोली चलाने के पक्षधर नहीं थे. गुलजारीलाल नंदा को इसकी सज़ा मिली और उसके बाद इंदिरा ने उन्हें कभी अपने किसी मंत्रीमंडल में शामिल नहीं किया. रामरंग जी के अनुसार इंदिरा सरकार ने इस पूरे घटनाक्रम को एक तरह से दबा दिया, जिसकी वजह से गोरक्षा के लिए उस बड़े आन्दोलन और कांग्रेस सरकार के खुनी कृत्य से आज की युवापीढ़ी अनजान ही है. (
aadhiabadi.in में ०६ अक्टूबर २०१५ को प्रकाशित: लेखक संदीप देव द्वारा रामरंगजी के साक्षात्कार पर आधारित)
साल १९७० में इमरजेंसी के दौरान चुनाव प्रचार के लिए हजारों सिखों को कैद कर लिया गया था और यही नहीं जून १९८४ में आप्रेशन ब्लू स्टार के दौरान इंदिरा गाँधी ने भारतीय सेना को स्वर्ण मन्दिर पर कब्जा करने का आदेश दिया था. इंदिरा गाँधी के इस आपरेशन को “ब्लू स्टार” नाम दिया था. इंदिरा गाँधी ने भारतीय सेना के तत्कालीन वाइस चीफ लेफ्टिनेंट जनरल एस.के सिन्हा को लालच देते हुए कहा था कि वो अपने जवानों को अमृतसर में मौजूद सिखों पर हमला करेंगे तो उन्हें वो आर्मी चीफ बना देंगी. इस पर एस के सिन्हा ने इंकार कर दिया और प्रधानमंत्री का अमृतसर में कथित सिख अलगाववादीयों पर हमला करने का आदेश भी नहीं माना था. जिसके चलते उन्हें उनके पद से हटा दिया गया था. आपरेशन ब्लू स्टार में जनरैल सिंह भिंडरावाले और उसके समर्थकों को खत्म करने के लिए इंदिरा गाँधी ने भारतीय सेना को तोपों के साथ चढाई करने का आदेश दिया था. उस दौरान भारतीय सेना ने सात विजयंत टैंकों का इस्तेमाल करते हुए सिखों के हरमिंदर परिसर पर आक्रमण किया था. इसी के चलते इंदिरा के अंगरक्षकों ने ३१ अक्टूबर १९८४ को गोपाष्टमी के दिन इंदिरा की हत्या कर दी थी. जिसके बाद उसी साल १९८४ में देशभर में सिख विरोधी दंगे भडक उठे. इन दंगों के चलते ३००० से ज्यादा लोगों की मौत का अनुमान लगाया गया था. जिसमें २००० हजार से ज्यादा लोग दिल्ली में मारे गए थे. इन दंगों के दौरान लाखों की संख्या में सिख विस्थापित हुए. लाखों सिखों को अपना घर छोड़ना पड़ा. सिखों के इस नरसंहार के बाद सीबीआई ने कहा था कि ये दंगे राजीव गाँधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार और दिल्ली पुलिस ने मिलकर कराए हैं. उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी का एक बयान भी काफी सुर्खियों में था जिसमें उन्होंने कथित रूप से कहा था कि “जब एक बड़ा पेड़ गिरता है, तब पृथ्वी भी हिलती है”

(oneindia hindi, posted by Ankur Sharma 30 march, 2016)
 
कांग्रेस कितना भी प्रायश्चित कर ले लेकिन हजारों-लाखों निर्दोष और मासूम लोगों का खून अपने लिए इन्साफ की पुकार करता ही रहेगा और उसके छींटे कांग्रेस के दामन को हमेशा दागदार करते रहेंगे.

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