क्या किसी पत्रकार संगठन को एक राजनीतिज्ञ को अपना संरक्षक बनाना चाहिए

कल चांदपुर के एक प्रसिद्ध होटल में एक पत्रकार संगठन के द्वारा स्वागत समारोह आयोजित किया गया था। मुझे भी उस आयोजन में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।।
*सबसे पहले मैं उस संगठन के सभी सदस्यों और पदाधिकारियों का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ कि उन्होंने मुझे सम्मान दिया साथ ही कार्यक्रम के सफल आयोजन हेतु आयोजकों को भी हार्दिक बधाई देता हूँ।।*
कार्यक्रम के दौरान और समाप्ति के पश्चात कई लोगों ने आपस में और कुछ लोगों ने मुझसे कुछ सवाल किए।
1. क्या कार्यक्रम सही तरीके से ऑर्गेनाइज्ड हो पाया है?
2. क्या पत्रकारों को वास्तव में सुरक्षा की ज़रूरत है?
3. क्या किसी राजनीतिज्ञ को एक पत्रकार संगठन का संरक्षक होना चाहिए? और वो भी ऐसा नेता जो नगरपालिका अध्यक्ष से सीधे तौर से जुड़ा हो।
उन्हीं कुछ सवालों के जवाब मैं अपनी इस पोस्ट के माध्यम से दे रहा हूँ।।
1. जहां तक कार्यक्रम के प्रबंध में हुई अनियमितता का प्रश्न है तो वो कोई बड़ा मामला नहीं है, क्योंकि प्रत्येक कार्यक्रम में कोई न कोई चूक हो ही जाती है, हमें ये नहीं देखना चाहिए कि कमियां क्या रहीं बल्कि ये सोचना चाहिए कि हमें आगे के लिए कार्यक्रम को बेहतर बनाने के लिए क्या सुझाव देने चाहिए।।
2. पिछले कुछ समय से पत्रकारों के विरूद्ध जिस प्रकार से घटनाओं में वृध्दि हुईं हैं उनसे यह बेहद जरूरी हो जाता है कि पत्रकारों को एकजुट करने का हरसम्भव प्रयास होना चाहिए और प्रत्येक पत्रकार को सुरक्षा मिलनी चाहिए।
किन्तु धरातल पर ऐसा होता नहीं है, बल्कि छोटी-छोटी मछलियों को एकत्रित कर बड़े मगरमछ निगल जाते हैं। आज हर नगर, हर जिले और प्रदेश में कुकुरमुत्ते की तरह पत्रकार संगठन उग रहे हैं किंतु खाकी और खादी के गठजोड़ के सामने लगभग सभी लाचार नज़र आते हैं।
प्रेस ट्र्स्ट ऑफ इंडिया, मानवाधिकार आयोग और पत्रकारों को सुरक्षा देने के वादे करने वाली सत्ताधिकारी पार्टी हमेशा ही कटघरे में खड़े नज़र आते हैं। हालांकि इसके लिए स्वयं पत्रकार भी दोषी हैं।
इसके बावजूद मैं ऐसे प्रत्येक संगठन के पक्ष में खड़ा हूँ जो निःस्वार्थ और निष्पक्ष पत्रकारिता को सुरक्षा देने के लिए प्रतिबद्ध नज़र आता है।
3. तीसरा और अंतिम महत्वपूर्ण प्रश्न है कि क्या किसी राजनैतिक दल के नेता को पत्रकार संगठन का संरक्षक होना चाहिए?
यह वास्तव में बेहद महत्वपूर्ण प्रश्न है कि जब एक पत्रकार संगठन का संरक्षक एक राजनीतिक दल का नेता होगा और वो भी वह व्यक्ति जिसका सीधा सम्बन्ध नगरपालिका परिषद की वर्तमान चेयरपर्सन से हो, तब ये सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि क्या उस पत्रकार संगठन से जुड़े सदस्य नगरपालिका परिषद से जुड़ी समस्याओं को निष्पक्ष तरीके से उठा पाएंगे?
सवाल ये भी है कि यदि कोई पत्रकार निष्पक्षता और निडरता के साथ नगरपालिका परिषद में फैले भ्र्ष्टाचार, कमियों या फिर अन्य किसी समस्या को उठाता है जो वास्तव में समाजहित से जुड़ी हैं, तब क्या यह संगठन उस पत्रकार का उत्पीड़न रोकने के लिए खड़ा होगा??

मैंने इन सवालों के जवाबों के लिए सीधे संगठन के संरक्षक और समाजसेवी मौहम्मद अरशद अंसारी से बातचीत की और भविष्य के लिए उसे रिकॉर्ड भी कर लिया।।
जिसमें उन्होंने बड़े ही स्पष्ट और निष्पक्ष तरीके से अपनी बात रखते हुए कहा कि *"मैं न तो किसी संगठन के साथ हूँ और न ही किसी व्यक्ति विशेष के पक्ष में हूँ बल्कि मैं प्रत्येक उस व्यक्ति का सहयोग एवं समर्थन करूँगा जो जायज़ तरीके से जायज़ बात को रखता है।।"*
उन्होंने बताया कि *उन्होंने अपने सभी साथियों और शुभचिन्तकों से स्पष्ट रूप से कह रखा है कि किसी भी व्यक्ति को कोई भी अपशब्द, धमकी आदि न दी जाए, भले ही वह मेरा (मौहम्मद अरशद साहब) का घोर विरोधी ही क्यों न हो।।*
अब देखना केवल इतना है कि क्या ये केवल एक पॉलिटिकल स्टेटमेंट है या फिर वास्तव में अरशद साहब के दिल की आवाज़।।
हालांकि जब इसी सम्बन्ध में मैंने उक्त संगठन से जुड़े एक पदाधिकारी महोदय से सवाल पूछा तो उन्होंने फोन पर जवाब देने से मना कर दिया.
फिलहाल हम सिर्फ इतना ही कहेंगे कि चाँदपुर के छोटे पत्रकारों ने ये एक बड़ा कार्य किया है और निश्चित रूप से उसका लाभ सभी छोटे-मंझले पत्रकारों को होगा।
एकजुटता जरूरी है और आज के दौर में बेहद महत्वपूर्ण भी है। बशर्ते कि ये बिना किसी भेदभावपूर्ण रवैए और सबका साथ, सबका विकास के नारे से हो।।
हम कल भी अकेले लड़ रहे थे और हम आज भी अकेले लड़ेंगे।।।
✍मनोज चतुर्वेदी *शास्त्री*
9058118317
सह-सम्पादक -दैनिक उगता भारत (हिंदी), नॉएडा
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