अपना काम बनता, अब भाड़ में जाए जनता

मुहम्मद अरशद vs शेरबाज पठान 
इस देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ कि जनता बहुत भोली है. इस जनता की सबसे बड़ी कमजोरी है जज्बात, और इस देश के राजनीतिज्ञ जनता की इस कमजोरी का फायदा उठाना बहुत अच्छी तरह से जानते हैं. हर बार कोई नया नेता आता है और जनता उसकी चिकनी-चुपड़ी बातों में आ जाती है. हर नया नेता और उसके समर्थक ये कहकर सरकार बनाते हैं कि पिछली सरकार ने कुछ नहीं किया इसलिए उसको मौका दिया जाये, और भोली-भाली जनता इस बात पर विश्वास भी कर लेती है कि शायद ये नया नेता उनके लिए कुछ करेगा, लेकिन जब नेताजी कुर्सी पर बैठ जाते हैं तो वो और उनके समर्थक उलटे जनता से ही ये पूछने लगते हैं कि पिछले नेताजी ने कुछ नहीं किया तब आपने उनसे कुछ क्यों नहीं पूछा? यानि कहने का अर्थ ये कि “कुर्सी ये कहकर हथियाई जाती है कि पिछले वाले ने कुछ नहीं किया, लेकिन हम जरुर कुछ करेंगे, और जब हथिया ली जाती है, तब ये कहकर कुछ नहीं किया जाता कि जब पिछले वाले ने कुछ नहीं किया तब हम क्यों कुछ करें.” पहले राष्ट्रीय स्तर की पार्टियाँ और नेता ही ऐसा करते थे, लेकिन अब तो लोकल स्तर के नेता भी ऐसा ही करने लगे हैं.
मुहम्मद अरशद और अखिलेश यादव 
उत्तर-प्रदेश में पिछले पांच सालों में समाजवादी की सरकार थी और चांदपुर नगरपालिका परिषद की पूर्व चेयरपर्सन श्रीमती जीनत शेरबाज पठान थीं. जोकि भूतपूर्व चेयरमैन और समाजवादी नेता रहे, शेरबाज पठान की पत्नी हैं. अर्थात सरकार भी समाजवादी की थी और चेयरपर्सन भी समाजवादी नेता की पत्नी ही थीं. वर्तमान में भी चेयरपर्सन श्रीमती फहमिदा हैं जो कि समाजवादी की सीट पर चुनाव जीती हैं, और इनके सुपुत्र मुहम्मद अरशद खुद पूर्व विधानसभा प्रत्याशी रह चुके हैं और समाजवादी नेता भी हैं.
मुहम्मद अरशद और नरेश उत्तम 
लेकिन मजे की बात ये है कि जब कभी भी कोई जागरूक नागरिक वर्तमान चेयरपर्सन से ये जानना चाहता है कि चांदपुर नगरपालिका परिषद में विकास के लिए क्या प्रयास किया जा रहा है तब कोई संतोषजनक उत्तर देने के स्थान पर उलटे जनता पर ही ये सवाल दाग दिया जाता है कि “आपने पिछले चेयरपर्सन से कोई सवाल क्यों नहीं पूछा? साथ ही ये सवाल भी उठाया जाता है कि पिछले चेयरपर्सन ने भी तो कोई विकास कार्य नहीं किया.

यहाँ देखने वाली बात ये है कि खुद समाजवादी के नेता और कार्यकर्त्ता ही अपनी समाजवादी सरकार पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं. एक तरफ सपा मुखिया अखिलेश यादव को विकास पुरुष बताया जाता है और दूसरी तरफ उनके कार्यकाल में चेयरपर्सन रहीं जीनत शेरबाज पठान पर विकास न करने का कथित आरोप भी लगाया जा रहा है.
अगर एक बार को ये मान भी लिया जाए कि समाजवादी सरकार में चेयरपर्सन जीनत शेरबाज पठान ने कोई विकास कार्य नहीं किया, तब ये सवाल उठना स्वभाविक ही है कि क्या वर्तमान चेयरपर्सन फहमिदा अंसारी जो कि समाजवादी सीट पर चुनी गई हैं, भी उन्हीं के नक्शे-कदमों पर चलने की तैयारी कर रही हैं?
प्रश्न ये भी है कि फिर ये कैसे मान लिया जाए कि अखिलेश सरकार ने कोई विकास कार्य किया, क्योंकि उनके कार्यकर्त्ता और नेता ही इस बात पर सवाल खड़ा कर रहे हैं कि पिछले ५ सालों में नगरपालिका परिषद चांदपुर में कोई विकास कार्य नहीं हुआ बल्कि कथित रूप से गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार का राज रहा है. अब सवाल ये भी है कि आज जिस तरह से खुलेआम सोशल मीडिया पर पत्रकारों के साथ बदसलूकी, गाली-गलौच और मारपीट की धमकी दी जा रही है, जैसा कि एक दैनिक समाचार-पत्र ने कुछ स्क्रीन शॉट के फोटो प्रकाशित किये हैं, क्या वो खुलेआम गुंडागर्दी नहीं है? इससे तो ऐसा ही लगता है कि ये सबकुछ समाजवादी पार्टी को बदनाम करने का कोई बड़ा षडयंत्र है.
इलियास अंसारी, फामिदा अंसारी और मुहम्मद अरशद 
यहाँ ये भी उल्लेखनीय है कि वर्तमान चेयरपर्सन के समर्थकों ने चुनाव के समय भूतपूर्व चेयरमैन पर गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार के कथित आरोप लगाये थे और जनता से केवल विकास की राजनीति करने का वायदा किया था. लेकिन लगता है कि अब केवल “विनाश की राजनीति” हो रही है. अब जनता अपने को ठगा सा महसूस कर रही है, और जो शराफत के ब्रांड एम्बेसडर बने घूम रहे थे, उनका कोई अता-पता नहीं है. कुल मिलाकर लगता है कि उनका एक ही नारा बन गया है “अपना काम बनता, अब भाड़ में जाये जनता”.

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