क्या मुसलमान को अच्छी शिक्षा प्राप्त करने का हक नहीं

इस्लाम मे शिक्षा के महत्व का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुरान की पहली आयत जब आयी थी तो उसकी शुरुआत “इकरा शब्द से हुई, इकरा का मतलब है “पढो मुसलमानों को बहुत गर्व महसूस होता है जब वे पैगम्बर-ए-इस्लाम की इस बात को दोहराते हैं कि ‘‘इल्म हासिल करने के लिए चीन भी जाना पड़े तो जाओ’’ इससे इस्लाम में इल्म हासिल करने की अहमियत का पता चलता है भले ही कितनी भी मुश्किलें क्यों न उठानी पड़ें। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि मुहम्मद साहब सल्ल. के जमाने में चीनी सभ्यता पूर्ण विकसित हालत में थी। मुसलमान देश का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक वर्ग है, मगर तालीम के मामले में सबसे पिछड़े हुए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार मुसलमानों में अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की तुलना में साक्षरता सबसे कम है। देश में जहां 74 प्रतिशत लोग साक्षर हैं, वहां मुसलमानों में साक्षरता प्रतिशत 67 प्रतिशत हैं।  अब अगर हम केवल अपने छोटे से शहर चांदपुर की ही बात करें तो चांदपुर में जितने भी अंग्रेजी माध्यम के अच्छे स्कूल हैं उनमें से करीब ९९ प्रतिशत स्कूल हिन्दू समाज से जुड़े लोगों के ही हैं जबकि पिछले १० सालों से चांदपुर क्षेत्र में लगातार विधायक, चेयरमैन और ब्लॉक प्रमुख तक सभी पदों पर मुस्लिम समाज के लोगों का बोलबाला रहा, लेकिन किसी ने भी एक भी ऐसा स्कूल नहीं खोला जिसमें गरीब मुस्लिम वर्ग के बच्चे अच्छी प्रारम्भिक शिक्षा पा सकें. मजे की बात ये है कि चांदपुर में मुस्लिम आबादी करीब ७२ प्रतिशत है और हिन्दू आबादी कुल २७ प्रतिशत है. और तो और नगरपालिका में चल रहा सार्वजानिक पुस्तकालय भी वर्षों से बंद पड़ा है. मुस्लिम आबादी का एक बड़ा भाग अशिक्षित है, लेकिन उसकी चिंता किसी को नहीं है. जब खुद मुस्लिम समाज के जन-प्रतिनिधियों ने ही अपने समाज की शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया तब मुस्लिम समाज को वोटबैंक समझने वाले अन्य समाज के नेताओं से तो कोई उम्मीद की ही नहीं जा सकती.
पिछले लगभग ७ वर्षों से मैं चांदपुर क्षेत्र के सरकारी विद्यालयों में “दयालु नागरिक” नाम से एक निःशुल्क मानव शिक्षा कार्यक्रम चला रहा हूँ. और इन सात सालों में मुझे केवल एक ही अनुभव हुआ कि शिक्षा के मामले में मुस्लिमों की स्थिति दलितों से भी बदतर है. छोटे-छोटे बच्चे दुकानों पर, होटलों में काम करते देखे जा सकते हैं, ठेले और रिक्शा चलाने वाले बच्चों में मुस्लिम बच्चों की संख्या सबसे अधिक है. कई मुस्लिम बच्चे तो सुबह ही रिक्शा लेकर घर-घर जाकर कबाड़ इकट्ठा करते हैं, अण्डों के ठेले लगाते हैं, मजदूरी करते हैं. चांदपुर में आप सर्वे कराएँगे तो मालूम होगा कि कुल मुस्लिम आबादी का करीब ६०-७० प्रतिशत मुस्लिम युवा बेरोजगार और अशिक्षित है.
इसी शहर के एक ईमानदार और स्वाभिमानी मुस्लिम शख्स ने स्व-साधनों से मौहल्ला पतियापाडा में एक बुक-बैंक खोला था जिसमें गरीब बच्चों को मुफ्त किताबें बांटी जाती थीं किन्तु आवश्यक धन और उचित स्थान के अभाव में यह बुक-बैंक भी अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है. उसके बाद किसी ने भी कोई ऐसा प्रयास नहीं किया और शायद अब करेगा भी नहीं.
चांदपुर में मुस्लिम समाज में मजदूर, राज-मिस्त्री, मोटर-मकैनिक, टैक्सी-ड्राइवर, ट्रक-ड्राईवर, ऑटो-मैकेनिक सहित कई हाथ के कारीगर थोक के भाव मिल जायेंगे लेकिन इंजीनियर,एम.बी.बी.एस डॉक्टर, आई.ऐ.एस या पी.सी.एस आपको चिराग लेकर भी ढूँढने से नहीं मिलेंगे और कोई भूल से होगा भी तो या तो वो दिल्ली चला गया होगा या फिर विदेश जाने की तैयारी में लगा होगा.
अब सवाल ये है कि चांदपुर में मुस्लिमों को अपना वोट बैंक समझने वाले राजनीतिक दल/राजनीतिज्ञ, मुस्लिमों की गरीबी और पिछड़ेपन पर घडियाली आंसू बहाने वाले और उनकी मजबूरियों का सौदा करने वाले आखिर कब तक इन गरीबों के नाम पर अपनी रोटियां सकते रहेंगे? क्यों नहीं वो लोग इनकी शिक्षा का उचित प्रबंध करते? क्या मुसलमान को अच्छी शिक्षा प्राप्त करने का हक नहीं या फिर उन्हें अशिक्षित रखने के पीछे कोई बड़ा राजनितिक षड्यंत्र है?     
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सौजन्य से- डॉ. मौहम्मद उस्मान, मौहल्ला पतियापाड़ा, मोबाइल 9639133299

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