क्या ब्राह्मण केवल गोलियां और गालियाँ सहने के लिए ही इस देश में रह रहा है


केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक कानून 1992 के तहत राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की है। भारत में 6 धार्मिक समुदायों को अल्पसंख्यकों का दर्जा हासिल है इनमें, मुस्लिम, क्रिश्चयन, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी शामिल है। पिछले कुछ दिनों से हिन्दू समुदाय की कई जातियां भी अपनी पौराणिक अस्मिता और पहचान के आधार पर अल्पसंख्यक दर्जे की मांग कर रही है। अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें कई योजनाएं और स्कीमें चलाती है और उनकी धार्मिक, सामाजिक पहचान की रक्षा करती हैं। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार वैदिक ब्राह्माणों को अल्पसंख्यक का दर्जा देने पर विचार कर रही है। सरकार ने इस प्रस्ताव को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को भेजा था. केन्द्र सरकार ने अल्पसंख्यक आयोग को कहा था कि वो इस प्रस्ताव पर विचार करे और वैदिक ब्राह्मणों को अल्पसंख्यकों का दर्जा देने की सिफारिश करे। लेकिन राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने केन्द्र के ऐसे किसी भी कदम का विरोध करते हुए कहा कि ऐसा कोई भी कदम मौजूदा अल्पसंख्यकों के हितों के खिलाफ होगा, अल्पसंख्यक आयोग सरकार के ऐसे किसी भी कदम खिलाफ है। साल 2016-17 की रिपोर्ट में अल्पसंख्यक आयोग ने कहा है कि वैदिक ब्राह्मणों को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया जा सकता, क्योंकि वे हिन्दू धर्म के अभिन्न अंग हैं। हालांकि कमीशन ने इस बारे में अंतिम फैसला केन्द्र सरकार पर छोड़ दिया है।
अल्पसंख्यक आयोग का कहना है कि यदि सरकार ब्राह्मण संगठनों की मांग पर वैदिक ब्राह्मणों को अल्पसंख्यक का दर्जा दे देती है तो इसी तरह की मांग राजपूत, वैश्य और दूसरे हिन्दू जातियों की तरफ से भी उठ सकती है। इसलिए ब्राह्मणों को अल्पसंख्यक का दर्जा देना सही नहीं है। सिर्फ यह दावा करने से कि वैदिक ब्राह्मण थोड़े ही हैं, इससे यह नजरिया नहीं अपनाया जा सकता है कि सरकार को उन्हें अल्पसंख्यक घोषित कर देना चाहिए।  आयोग ने यह भी कहा कि समुदाय यह भी दावा करते हैं कि वे अपनी परंपरा और संस्कृति के सरंक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिससे अल्पसंख्यक का दर्जा मांगने के उनके दावे में दम नहीं आ जाता है। इसके मुताबिक, यूनेस्को वेद और वैदिक संस्कृति के संरक्षण का अनुरोध कर रहा है। यह भी उन्हें पृथक अल्पसंख्यक घोषित करने के मामले का समर्थन नहीं करता है। हालांकि कमीशन ने इस बारे में अंतिम फैसला केन्द्र सरकार पर छोड़ दिया है।
वैदिक ब्राह्मणों को अल्पसंख्यक दर्जा मिलने पर फायदे-

  • सनातन धर्म की सुरक्षा होगी।
  • वैदिक धर्म की नैतिक शिक्षा पढ़ाई कराने का ब्राह्मण स्कूलों को अधिकार मिलेगा।
  • कम ब्याज पर लोन, व्यवसाय व शिक्षा तकनीकी हेतु उपलब्ध होंगे।
  • ब्राह्मण/ वैदिक कॉलेजों में ब्राह्मण बच्चों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षित सीट होगी।
  • ब्राह्मण समुदाय में अल्पसंख्यक घोषित होने से सविधान के अनुच्छेद 25 से 30 के अनुसार ब्राह्मण समुदाय धर्म, भाषा, संस्कृति की रक्षा सविधान में उपलब्धों के अंतर्गत हो सकेगी।
  • ब्राह्मण धर्मावलंबियों के धार्मिक स्थल, संस्थाओं, मंदिरों, तीर्थ, क्षेत्रों एव ट्रस्ट का सरकारीकरण या अधिग्रहण आदि नही किया जा सकेगा अपितु धार्मिक स्थलों का समुचित विकास एव सुरक्षा के व्यापक प्रबंध शासन द्वारा भी किए जाएंगे।
  • उपासना स्थल से संबंधित सेक्शन 2 (सी) ऑफ नेशनल कमीशन फॉर माइनोरिटीज (एनसीएम) एक्ट (एनसीएम) 1992 के तहत किसी धार्मिक उपासना स्थल को बनाए रखने हेतु स्पष्ट निर्देश जिसका उल्लंघन धारा 6 (3) के अधीन दंडनीय अपराध है।
  • पुराने स्थलों एव पुरातन धरोहर को सुरक्षित रखना सन् 1958 के अधिनियम धारा 19 एव 20 के तहत सुरक्षित होगा।
  • समुदाय द्वारा संचालित ट्रस्टों की सम्पति को किराया नियंत्रण अधिनियम से भी मुक्त रखा जाएगा।
  • सनातन धर्मावलम्बी अपनी प्राचीन संस्कृति पुरातत्व एव धर्मस्थलों का सरक्षण कर सकेंगे
  • जो प्रतिभावान अल्पसंख्यक विद्यार्थी जिले के उत्कृष्ट विद्यालयों में प्रवेश पाते हैं तो उनमें गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले विद्यार्थियों का 9वीं, 10वीं, 12वीं का शिक्षण शुल्क एव अन्य शुल्क पूर्णत माफ कर दिया जाएगा।
  • सनातन मंदिरों, तीर्थ स्थलों, शैक्षणिक संस्थाओं इत्यादि के प्रबंध की जिम्मेदारी ब्राह्मण समुदाय के हाथों में दी जाएगी।
  • शैक्षणिक एव अन्य संस्थाओं को स्थापित करने या उनके संचालन में सरकारी हस्तक्षेप कम हो जाएगा।
  • विश्वविद्यालय द्वारा संचालित कोचिंग कॉलेजों में समुदाय के विद्यार्थियों को फ़ीस माफ़ या कम होने की पात्रता होगी।
  • सरकार द्वारा ब्राह्मण समुदाय को स्कूल, कॉलेज, छात्रावास, शोध या प्रशिक्षण संस्थान खोलने हेतु सभी सुविधाएं एव रियायती दर पर जमीन उपलब्ध करवाई जाएगी।
  • ब्राह्मण समुदाय के विद्यार्थियों को प्रशानिक सेवाओं और व्यवसायिक पाठ्यक्रम के प्रशिक्षण हेतु अनुदान मिल सकेगा।
  • ब्राह्मण समुदाय द्वारा संचालित जिन संस्थाओं पर कानून की आड़ में बहुसंख्यकों ने कब्जा जमा रखा है उनसे मुक्ति मिलेगी।
  • ब्राह्मण द्वारा पुण्यार्थ, प्राणीसेवा, शिक्षा इत्यादि हेतु दान धन करमुक्त होगा।
  • ब्राह्मण धर्मावलम्बी को बहुसंख्यिक समुदाय के द्वारा प्रताड़ित किए जाने की स्थिति में सरकार ब्राह्मण की रक्षा करेगी।
  • अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक स्थल के समुचित विकास एव सुरक्षा के व्यापक प्रबंध शासन द्वारा किए जाएंगे।
  • अल्पसंख्यक वर्ग युवाओं में खेलकूद व अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में प्रोत्साहन हेतु अनुदान एक छात्रवृत्तियों में विशेष प्रावधानों का लाभ मिल सकेगा,  ताकि गरीबी रेखा से नीचे आने वाले तथा आर्थिक स्थति से कमजोर वर्ग का शैक्षणिक, सामयिक एव आर्थिक विकास हो सके।
  • अल्पसंख्यक समुदाय के लिए कराए गए आर्थिक सामाजिक, शैक्षणिक स्थिति के सर्वेक्षण के आधार पर रोजगार मूल सुविधा का लाभ मिलेगा।

    लेकिन इन सबके बावजूद इस मुद्दे को कथित ब्राह्मणवादी भाजपा सरकार ने ठन्डे बस्ते में डाल रखा है. उधर कुकुरमुत्तों की तरह उग रहे ब्राह्मण संगठनों ने भी इस विषय में अभी तक कोई आवाज नहीं उठाई है. प्रश्न यह है कि क्या हिन्दू संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन की समस्त जिम्मेदारी केवल ब्राह्मणों तक ही सीमित है? हर बार ब्राह्मणों के वोटों के दम पर ही सरकारें बनती हैं. लेकिन क्या उसका कोई लाभ ब्राह्मण समुदाय को मिल पाता है? भाजपा सरकार ब्राह्मणों की सरकार कहलाती है लेकिन बावजूद इसके चंद लोगों को छोड़कर ब्राह्मण समुदाय के अन्य लोगों को अभी तक कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं मिल पाया है जबकि सबसे अधिक प्रताड़ना और अपमान ब्राह्मणों को ही झेलना पड़ता है. कांग्रेस सरकार ने भी ब्राह्मणों को कुछ नहीं दिया.
    मेरा समस्त बुद्धिजीवियों से प्रश्न है कि क्या ब्राह्मण केवल गोलियां और गालियाँ सहने के लिए ही इस देश में रह रहा है?    
    संकलन- मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री” 

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